रविवार, जून 11, 2017

पावस के दोहे - डॉ. वर्षा सिंह

डॉ. वर्षा सिंह

प्रियतम का संदेश ले, आया श्वेत कपोत ।
"वर्षा" होगी  नेह की, जागी मन में जोत ।।

एक बरस के बाद फिर, आया है आषाढ़ ।
प्रकृति-हृदय में आ गई, खुशहाली की बाढ़ ।।

जंगल होंगे  फिर हरे, नये  खिलेंगे फूल ।
अब ढूंढे से भी नहीं, कहीं दिखेगी धूल ।।

"वर्षा" की ऋतु आ गई, बरसन लागे मेह ।
धरती  हरियाने  लगी, भीगी  सूखी  देह।।

गीतों में फिर ढाल कर, कहना मन की बात।
रिमझिम का संगीत है, "वर्षा" के दिन- रात ।।

                              ❤  - डॉ वर्षा सिंह

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (13-06-2017) को
    रविकर यदि छोटा दिखे, नहीं दूर से घूर; चर्चामंच 2644
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (२६-०७-२०२०) को शब्द-सृजन-३१ 'पावस ऋतु' (चर्चा अंक -३७७४) पर भी होगी
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

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    1. अरे वाह, वास्तव में अत्यंत सुखद समाचार

      हार्दिक आभार अनीता सैनी जी 🙏

      हटाएं
  3. वर्षा ऋतु पर लाजवाब दोहे
    वाह!!!

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  4. बहुत सुंदर दोहे आदरणीया

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  5. बेहतरीन दोहे । हार्दिक बधाई ।

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