शुक्रवार, जून 19, 2015

दस दोहे बरसात पर..... Poetry on Rain...

Dr Varsha Singh




सूखी धरती पर पड़े, पानी की बौछार ।
हरियाये मन दूब सा, करे नया श्रृंगार ।। 1 ।।

भीग रहे हैं साथ में, धरती औ आकाश ।
बांध रहा है फिर इन्हें, बूंदों वाला पाश ।। 2 ।।

बाग-बगीचे खिल गए, खुशबू वाले फूल ।
अब मौसम लगने लगा, एकदम ही अनुकूल ।। 3 ।।

कागज की नावें चलीं, लिए ढेर सा प्यार ।
जो प्रियतम उस पार है, आ जाये इस पार ।। 4।।

पत्तों-पत्तों पर लिखें, बूंदें अपना हाल ।
पढ़-पढ़ कर वे पंक्तियां, झुकती जाये डाल ।। 5।।

फूलों से लदने लगी, फिर कदम्ब की डाल ।
बजी बंसुरिया दूर पर, बदली- बदली चाल ।। 6।।

दादुर बोले सांझ को, कोयल बोले भोर ।
दोपहरी को कर रहीं, बूंदें मिल कर शोर ।। 7 ।।

इन्द्रधनुष दिखने लगे, कभी बीच बरसात ।
जैसे कोई ठहर कर, कर ले मीठी बात ।। 8 ।।

भरी नदी, नद भर गए, भरी लबालब झील ।
मनमानी जलधार की, सुनती नहीं दलील ।। 9 ।।

"वर्षा"  बादल से कहे, बरसो इतना रोज़ ।
प्यासी धरती तृप्त हो, रहे न जल की खोज ।। 10 ।।

                                                            - डॉ वर्षा सिंह
 

                                          

मंगलवार, जून 16, 2015

माटी मेरेे सागर की .... Mati mere Sagar ki ....

Dr Varsha Singh

 पावस के दोहे
               - डाॅ. वर्षा सिंह

मां के आंचल जैसी प्यारी ,  माटी मेरेे सागर की ।
सारे जग से अद्भुत न्यारी,  माटी मेरेे सागर की ।।

भूमि यही वो जहां ‘’गौर’’ ने, दान दिया था शिक्षा का
पाठ पढ़ाया  था  हम सबको,  संस्कार की  कक्षा का
विद्या की यह है फुलवारी , माटी मेरेे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी.................................

विद्यासागर जैसे  ऋषि-मुनि की   पावनता  पाती है
धर्म, ज्ञान की, स्वाभिमान की अनुपम उज्जवल थाती है
श्रद्धा, क्षमा, त्याग की क्यारी,  माटी मेरेे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी.................................

‘वर्णी जी’  की तपो भूमि यह, यही भूमि ‘पद्माकर’ की
‘कालीचरण’ शहीद यशस्वी, महिमा  अद्भुत सागर की
सारा जग इस पर बलिहारी, माटी मेरेे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी.................................

नौरादेही   में   संरक्षित   वन   जीवों  का डेरा है
मैया  हरसिद्धी  का  मंदिर, रानगिरी  का  फेरा  है
आबचंद की गुफा दुलारी,  माटी मेरेे  सागर  की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी.................................

राहतगढ़  की छटा अनूठी ,झर-झर झरती जलधारा
गढ़पहरा,  धामौनी  बिखरा ,  बुंदेली   वैभव  सारा
राजघाट, रमना चितहारी, माटी मेरेे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी.................................


एरण पुराधाम विष्णु का , सूर्यदेव हैं रहली में
देव बिहारी जी के हाथों सारा जग है मुरली में
पीली कोठी अजब सवारी , माटी मेरेे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी.................................

मेरा सागर मुझको प्यारा, यहीं हुए लाखा बंजारा
श्रम से अपने झील बना कर, संचित कर दी जल की धारा
‘वर्षा’-बूंदों की किलकारी , माटी मेरेे सागर की ।।
मां के आंचल जैसी प्यारी.................................



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सोमवार, जून 15, 2015

दस दोहे धूल पर .....Poetry on dust

Dr Varsha Singh


माथे सदा लगाइये, जन्मभूमि की धूल।
तन-मन के भीतर खिले, देशभक्ति का फूल।। 1।।

जीवन की है आस्था मिट्टी, पानी, धूल।
इन्हें त्यागने की कभी करना मत तुम भूल।। 2 ।।

अंतर मिट्टी-धूल में करना सहज समान
जैसे मानव की बने रंग, रूप, पहचान।। 3 ।।

धूलि गांव की स्वर्ण-सी, सदा लगाओ माथ।
 मां के आशीर्वाद-सी, देती हरदम साथ  ।। 4 ।।

श्रद्धा, भक्ति, सनेह की देती है जो सीख।
मूल्यवान है धूल ये कहीं न मिलती भीख ।। 5 ।।

धूल सरीखी जि़न्दगी, जिसे संवारे धूल । 
माथे इसे लगाइये, यह जीवन की मूल ।। 6 ।।

 मिट्टी काली, लाल है, लेकिन धूल सफेद ।
श्रम तब तक यूं कीजिए, देह गिरे जब स्वेद।। 7।।

पंचतत्व में एक है, मिट्टी प्राण समान।
यही कराती है हमें, देशभक्ति का ज्ञान।। 8 ।।

धूल हमें देती सदा, देश प्रेम की चाह।
बैर न करना धूल से, तभी मिलेगी राह।। 9 ।।

 "वर्षा" ने हरदम किया, महिमा धूलि बखान।
धूल सदा निज देश की, लगती हमें महान।। 10।।

                                       - डॉ. वर्षा सिंह